मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

अमीर किसान-गरीब किसान

हमारा देश किसानों का देश है कुछ वर्ष पहले तक एक ही वर्ग के किसान होते थे जिन्हे लोग 'गरीब किसान' के रूप में जानते थे जो सिर्फ़ खेती कर और रात-दिन मेहनत कर अपना व परिवार का गुजारा करते थे लेकिन समय के साथ-साथ बदलाव आया और एक नया वर्ग भी दिखने लगा जिसे हम 'अमीर किसान' कह सकते हैं।

... अरे भाई, ये 'अमीर किसान' कौन सी बला है जिसका नाम आज तक नहीं सुना .....और ये कहां से आ गया ... अब क्या बतायें, 'अमीर किसान' तो बस अमीर किसान है .... कुछ बडे-बडे धन्ना सेठों, नेताओं और अधिकारियों को कुछ जोड-तोड करने की सोची.... तो उन्होने दलालों के माध्यम से गांव-गांव मे गरीब-लाचार किसानो की जमीनें खरीदना शुरू कर दीं... और फ़िर जब जमीन खरीद ही लीं, तो किसान बनने से क्यों चूकें !!! ......... आखिर किसान बनने में बुराई ही क्या है........ फ़िर किसानी से आय मे 'इन्कमटैक्स' की छूट भी तो मिलती है साथ-ही-साथ ढेर सारी सरकारी सुविधायें भी तो है जिनका लाभ आज तक बेचारा 'गरीब किसान' नहीं उठा पाया ।

........ अरे भाई, यहां तक तो ठीक है पर हम ये कैसे पहचानेंगे कि अमीर किसान का खेत कौनसा है और गरीब किसान का कौन सा ? ............ बहुत आसान है मेरे भाई, जिस खेत के चारों ओर सीमेंट के खंबे और फ़ैंसिंग तार लगे हों तो समझ लो वह ही अमीर किसान का खेत है, थोडा और पास जाकर देखोगे तो खेत में अन्दर घुसने के लिये बाकायदा लोहे का मजबूत गेट लगा मिलेगा, तनिक गौर से अन्दर नजर दौडाओगे तो एक शानदार चमचमाती चार चक्का गाडी भी खडी दिख जायेगी ...... तो बस समझ लो यही 'अमीर किसान' का खेत है ।

........... अब अगर अमीर किसान और गरीब किसान में फ़र्क कुछ है, तो बस इतना ही है कि अमीर किसान के खेत की देखरेख साल भर होती है, और गरीब किसान के खेत में साल भर में एक बार "खेती" जरूर हो जाती है

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

चलिए, हम भी फर्क करना जान गये.

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

पहले मालगुजार होते थे अब बड़े किसान
रायपुर के आसपास भी राजधानी बनने के बाद कई बड़े किसान हो गए

Unknown ने कहा…

किसान के नाम पर कुछ लोग दिखावा करते है जो अपनी काली कमाई को सफ़ेद कर रहे,वस्तव मे इन अमीर किसानो के आय के स्रोत कुछ और ही होता है,वर्ना किसान क्या बडॆ और क्या छोटे सभी मुश्कील मे है छोटे किसान को जहा खेती मे निवेश के लिये पैसे चहिये वही बडे किसान मजदूर नही मिल्ने से है,खासकर छग मे,जहा धान की खेती ही मुख्य फ़सल है जो अपनी उपज बेचने के लिये सम्रर्थन मुल्य पर आसरीत है,यह कितनी विस्मीत करने वाली बात है कि बी पी एल परिवार बदते जा रहे है,साथ ही धान की सरकारी खरीदी बढ ही रही है इतनी उपज के बाद भी किसान कर्ज से क्यो लदा हुआ है,

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