रविवार, 14 मार्च 2010

एक ही जगह से निकल, नर्मदा और सोन विपरीतगामी क्यों हैं ?

पिछली होली पर चार दिनों का जुगाड़ कर नर्मदा नदी के उद्गम स्थल को देखने का मौका हथिया लिया गया। वहीं नदी के बारे में प्रचलित कथा को फिर से सुनने का मौका मिला। हाजिर है :-

अप्रतिम सुंदरी मेकलसुता नर्मदा जब बड़ी हुई तो उससे विवाह को आतुर राजकुमारों के सामने शर्त रखी गयी कि जो भी गुलबकावली के फूल ले कर आएगा, उसी से उसका विवाह किया जाएगा। इसमें सोनभद्र को सफलता मिली और उससे नर्मदा के परिणय का दिन तय कर दिया गया।
तयशुदा दिन सोनभद्र को आने में किसी कारण देर हो गयी तो नर्मदा ने अपनी सहेली को पता लगाने भेजा। गलती से सोनभद्र उसे ही नर्मदा समझ बैठा और उसके साथ हास-परिहास करने लगा।
सखी को ना आता देख नर्मदा खुद आगे बढ गयी पर वहां का महौल देख अति क्रुद्ध हो उठी और नदी का रूप धर पश्चिम की ओर दौड़ पड़ी। उधर सोनभद्र को जब असलियत पता चली तो उसे भी अपनी करनी पर दुख हुआ साथ ही नर्मदा की नासमझी पर क्रोध भी आया इसी वजह से वह नर्मदा की विपरीत दिशा में चल पड़ा।

आज भी ये दोनों नदियां एक ही जगह से निकल विपरीत दिशाओं की ओर रुख किए हुए हैं।

* पुराणों में कुछ नदियों को पुरुष रूप कहा गया है, जैसे सोन, व्यास, ब्रह्मपुत्र आदि।

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस कथा के लिए...

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी!

शरद कोकास ने कहा…

अच्छी कथा है ।

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