गुरुवार, 30 सितंबर 2010

हर पक्ष का ध्येय जब पूजा अर्चना ही है तो फिर विवाद क्यों?

विड़ंबना है या देश का दुर्भाग्य। ध्येय एक ही होने के बावजूद दसियों सालों से अयोध्या का विवाद क्यों है? जबकि हर पक्ष वहां पूजा, अर्चना ही करना चाहता है।
जिसकी पूजा करनी होती है वह श्रद्धेय होता है। उसके सामने झुकना पड़ता है। अपना बर्चस्व भूलाना पड़ता है। यहां लड़ाई है मालिक बनने की। अपने अहम की तुष्टी की। वही अहम जिसने विश्वविजयी, महा प्रतापी, ज्ञानवान, देवताओं के दर्प को भी चूर-चूर करने वाले रावण को भी नहीं छोड़ा था।

या फिर नजरों के सामने हैं - तिरुपति, वैष्णवदेवी या शिरड़ीं ?

रायपुर की एक सुबह

पाबला जी के एक आलेख को पढ़कर एक प्रयास, छोटे से कैमरा का कमाल । रिकॉर्डिंग avi फ़ारमैट में थी पिक्चर बहुत अच्छे थे लेकिन फाइल साइज़ कुछ 900 एमबी थी इसलिए इसे एमपी4 में कन्वर्ट करके अपलोड किया । बताइये कैसा है यह प्रयास। और पिक्चर quality  कैसी है  
http://www.youtube.com/watch?v=KT499jR4s4g

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

अयोध्या विवाद ... देश वासियों से एक मार्मिक अपील !!!

अयोध्या ... राम जन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवादास्पद स्थल के स्वामित्व विवाद पर आगामी कुछ दिनों में हाईकोर्ट लखनऊ द्वारा अपना फैसला सुनाये जाने की पूर्ण संभावना है

दावे-प्रतिदावे, तर्क-वितर्क का अपना-अपना महत्त्व है पर यहाँ पर मेरा मानना है कि कभी कभी सब निर्थक से जान पड़ते हैं, प्रश्न यहाँ सार्थकता निर्थकता का नहीं है, प्रश्न है मानवीय संवेदनाओं तत्कालीन परिस्थितियों का

एक तरफ दावे-प्रतिदावे, तर्क-वितर्क हों और दूसरी तरफ मानवीय संवेदनाएं वर्त्तमान परिस्थितियाँ हों, ऐसी स्थिति में हमारी मानवीय व्यवहारिक सोच क्या जवाब देती है यह भी विचारणीय है

एक प्रश्न धार्मिक आस्था विश्वास का भी है, यहाँ मेरा मानना है कि धर्म मानवीय जीवन के अंग हैं इन्हें हम मानवीय जीवन के साथ मान सकते हैं बढ़कर नहीं, यदि धार्मिक आस्थाएं विश्वास शान्ति सौहार्द्र का प्रतीक बनें तो अनुकरणीय सराहनीय हैं

जहां स्थिति विवाद की हो ... विवादास्पद हो ... वहां प्रश्न राम जन्मभूमि या बाबरी मस्जिद का नहीं होना चाहिए, और ही हिन्दू मुसलमानों की धार्मिक आस्थाओं का ... प्रश्न होना चाहिए हिन्दुओं मुसलमानों की भावनाओं संवेदनाओं का ... यह वह घड़ी है जब हिन्दुओं मुसलमानों को अपनी अपनी सार्थक सकारात्मक सोच व्यवहार का प्रदर्शन करते हुए मानवीय हित देश हित में एक मिशाल पेश करना है

मेरा मानना तो यह है कि अब हिन्दुओं मुसलमानों को मानवीय हित, सौहार्द्र शान्ति का पक्षधर होते हुए यह निश्चय कर लेना चाहिए कि अदालत तो अपना फैसला सुनाएगी ही, फैसला पक्ष में हो या विपक्ष में, पर हमारा - हम सबका फैसला शान्ति सौहार्द्र के पक्ष में है, देश हित में है

इस विवादास्पद मुद्दे पर मेरी अपील सिर्फ हन्दू-मुसलमानों से नहीं है वरन उन धार्मिक संघठनों राजनैतिक पार्टियों से भी है जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस मुद्दे से जुड़े हुए हैं, हम सभी शान्ति सौहार्द्र के पक्ष में सोचें कदम बढाएं

साथ ही साथ मेरा यह भी मानना है कि हिन्दू, मुसलमान, धार्मिक संघठन, राजनैतिक पार्टियां ... सभी औपचारिकता अनौपचारिकता के दायरे से बाहर निकलें तथा मानवीय हित, शान्ति सौहार्द्र के पक्षधर बनें

अयोध्या विवाद ... कोई चुनावी, राजनैतिक, खेल, हार-जीत जैसा प्रतिस्पर्धात्मक मुद्दा नहीं है और ही हो सकता है ... इसलिए इस पहलू पर हम सब की सोच व्यवहार सिर्फ ... सिर्फ ... और सिर्फ शान्ति सौहार्द्र की पक्षधर होनी चाहिए ... जय हिंद !!!

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

जब सिगरेट के कारण मोतीलालजी को फ़िल्म छोड़नी पड़ी

पहले के दिग्गज फिल्म निर्देशकों को अपने पर पूरा विश्वास और भरोसा होता था। उनके नाम और प्रोडक्शन की बनी फिल्म का लोग इंतजार करते थे। उसमे कौन काम कर रहा है यह बात उतने मायने नहीं रखती थी। कसी हुई पटकथा और सधे निर्देशन से उनकी फिल्में सदा धूम मचाती रहती थीं। अपनी कला पर पूर्ण विश्वास होने के कारण ऐसे निर्देशक कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं करते थे। ऐसे ही फिल्म निर्देशक थे वही. शांताराम। उन्हीं से जुड़ी एक घटना का जिक्र है -

उन दिनों शांतारामजी डा. कोटनीस पर एक फिल्म बना रहे थे "डा। कोटनीस की अमर कहानी।" जिसमें उन दिनों के दिग्गज तथा प्रथम श्रेणी के नायक मोतीलाल को लेना तय किया गया था। मोतीलाल ने उनका प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया था। शांतारामजी ने उन्हें मुंहमांगी रकम भी दे दी थी। पहले दिन जब सारी बातें तय हो गयीं तो मोतीलाल ने अपने सिगरेट केस से सिगरेट निकाली और वहीं पीने लगे। शांतारामजी बहुत अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। उनका नियम था कि स्टुडियो में कोई धुम्रपान नहीं करेगा। उन्होंने यह बात मोतीलाल से बताई और उनसे ऐसा ना करने को कहा। मोतीलाल को यह बात खल गयी, उन्होंने कहा कि सिगरेट तो मैं यहीं पिऊंगा।

शांतारामजी ने उसी समय सारे अनुबंध खत्म कर डाले और मोतीलाल को फिल्म से अलग कर दिया। फिर खुद ही कोटनीस की भूमिका निभायी।


क्या आज के इक्के-दुक्के लोगों को छोड़ किसी में ऐसी हिम्मत हो सकती है ?

रविवार, 12 सितंबर 2010

... श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं !!!



... एक नव गीत सृजन की इच्छा हुई ..... सृजन आपके समक्ष प्रस्तुत है ... आपकी प्रतिक्रया की आशा है ... धन्यवाद !!!

बप्पा बप्पा गणपति बप्पा
विघ्न विनाशक गणपति बप्पा

तेरे-मेरे गणपति बप्पा
हम सबके हैं गणपति बप्पा

गणपति बप्पा, गणपति बप्पा
घर घर विराजे गणपति बप्पा

जय जय बोलो गणपति बप्पा
गणपति बप्पा, गणपति बप्पा

लडडू लाओ, लडडू चढाओ
खाओ-खिलाओ गणपति बप्पा

आँगन-आँगन ढोल बजाओ
बिराज गए हैं गणपति बप्पा

गणपति बप्पा, गणपति बप्पा
हम सबके हैं गणपति बप्पा

सबसे आगे गणपति बप्पा
सबके संग-संग गणपति बप्पा

जोर से बोलो गणपति बप्पा
जय जय बोलो गणपति बप्पा

सिद्धि विनायक गणपति बप्पा
बप्पा बप्पा, गणपति बप्पा

विघ्न विनाशक गणपति बप्पा
बप्पा बप्पा, गणपति बप्पा

जय जय बोलो गणपति बप्पा
गणपति बप्पा, गणपति बप्पा !

... श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं !!!

बुधवार, 8 सितंबर 2010

थीम सांग ........ कॉमनवेल्थ गेम्स - 2010

... पिछले कुछ दिनों से कॉमनवेल्थ गेम्स के थीम सांग पर उंगलियाँ उठ रही हैं, पढ़ कर मन में एक नया गीत / कविता लिखने की इच्छा हुई ..... जो आपके समक्ष प्रस्तुत है आपकी प्रतिक्रया की आशा है ... धन्यवाद ...


आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें

खेल भावना से खेलें
सरहदों को भूल चलें

खेल भावना हो हार-जीत की
सरहदों में लड़ें - भिड़ें

हार जीत हैं खेल के हिस्से
पर हम खेलें, मान बढाएं

आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !

हर आँखों में बसे हैं सपने
खेल रहे हैं मिलकर अपने

कोई गोरा, कोई काला
जीत रहा जो, वो है निराला

जीतेंगे हम, जीत रहे हैं
मिलकर सब खेल रहे हैं

खेल खिलाड़ी खेल रहे हैं
खेल भावना जीत रही है

आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !

तुम खेलोगे, हम खेलेंगे
मान बढेगा, शान बढेगा

तुम जीतो या हम जीतें
एक नया इतिहास बनेगा

जीतेंगे हम खेल भावना
खेल भावना, खेल भावना

खेल चलें, चलो चलें
हर दिल को हम जीत चलें

आओ बढ़ें, चलो चलें
हम सब मिलकर खेल चलें !

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